पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के लिए अब ‘कोल टू लिक्विड’ तकनीक अपनाकर कोयले का प्रयोग किया जाएगा, जिसका प्रस्ताव कोयला मंत्रालय ने मंत्रिमंडल को मंजूरी के लिए भेजा दिया। इस पर प्रधानमंत्री ने मंत्रियों का समूह गठित कर दिया है। एक-डेढ़ माह में इस पर फैसला हो जाएगा। प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक में हिस्सा लेने आए कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि कानपुर के घाटमपुर में नेवेली लिग्नाइट और बिल्हौर में एनटीपीसी द्वारा बिजलीघर की स्थापना का काम जल्द शुरू होगा। प्रदेश के बिजलीघरों को जितना कोयला आवंटन है, कोल इंडिया उसकी आपूर्ति कर रहा है। कोई बिजलीघर कोयले की वजह से बंद नहीं है।
उन्होंने कहा कि कोयला मंत्रालय पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अब कोयले को प्रयोग से पहले साफ करने की तकनीक पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। इसीलिए कोल टू लिक्विड (सीटीएल) के लिए प्रस्ताव मांगा गया है। सीटीएल से कोयले को तरल ईंधन में परिवर्तित कर प्रयोग किया जाएगा। उनका कहना था कि इस विधि का विदेशों में प्रयोग किया जा रहा है। इसका अध्ययन करने के लिए उन्होंने हाल ही में विभागीय अधिकारियों के साथ दक्षिण अफ्रीका का दौरा किया था। जायसवाल ने कहा कि कोयले की सफाई के लिए दूसरी विधि ‘अंडर ग्रांउड कोल गैसीफिकेशन’ भी है, लेकिन यह अभी चलन में कम है और इसका भरपूर लाभ भी नहीं मिलता। इस तकनीक से कोयले को जमीन के अंदर ही गैस में परिवर्तित कर उपयोग किया जाता है।
कोयला मंत्री ने कहा कि वृद्धि दर बढ़ने के साथ ही ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ रही है। ऊर्जा के लिए कोयला बड़ा स्रोत है। सीमेंट, पेपर, लोहा और बिजली उत्पादन जैसे क्षेत्रों में कोयले की बड़ी खपत है।
उन्होंने स्वीकार किया कि पर्यावरण मंत्रालय के अंकुश की वजह से इस वर्ष वृद्धि दर का आकलन अभी मुश्किल है, लेकिन पिछले वर्ष यह दर सात-आठ प्रतिशत थी। उन्होंने कहा कि परमाणु बिजली पैदा करने में अभी भी कम से कम दस साल और थोरियम से बिजली बनाने में 25 साल लग सकते हैं। उन्होंने बताया कि विदेशों से कोयला आयात करने का प्रबंध किया जा रहा है। मोजांबिक में कोयले के दो ब्लॉक आवंटित हुए है, जिनमें तीन-चार वर्षों में उत्पादन शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश को उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में कोयला खदान आवंटित किए गए हैं, लेकिन वहां अभी तक राज्य सरकार ने उत्पादन शुरू कराने के लिए आधारभूत ढांचा भी तैयार नहीं किया है।
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