Saturday, January 1, 2011

इस साल बिजली क्षेत्र में खूब दौड़ा कर

 इस साल देश के बिजली क्षेत्र में जमकर करंट दौड़ा। कभी विनिवेश, कभी परमाणु ऊर्जा समझौतों और कभी क्षमता विस्तार की चर्चाओं से इस क्षेत्र ने खूब सुर्खियां बटोरीं। यह साल बिजली परियोजनाओं के आवंटन के लिए शुल्क आधारित बोली प्रक्रिया की ओर बढ़ने के लिए भी यादगार रहेगा। सरकार ने उम्मीद जताई कि यह नई पहल नौ फीसदी विकास दर हासिल करने और 12वीं योजना में कुल एक लाख मेगावाट की नई बिजली उत्पादन क्षमता स्थापित करने की दिशा में मददगार होगी। हालांकि 11वीं योजना के लिए सरकार ने बिजली उत्पादन लक्ष्य को 78,577 मेगावाट से घटाकर 62,374 मेगावाट कर दिया है। नवंबर तक देश में कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 1,67,317.3 मेगावाट तक पहुंच गई। बिजली कंपनियों में विनिवेश से भी इस साल यह क्षेत्र चर्चा में रहा। पावर ग्रिड कॉरपोरेशन और एनटीपीसी जैसी कंपनियों में विनिवेश से सरकार को करीब 20 हजार करोड़ रुपये मिले। एनटीपीसी के एफपीओ के जरिए 8,800 करोड़ रुपये जुटाए गए। इस विनिवेश के बाद कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 89.5 फीसदी से घटकर 84.5 फीसदी रह गई। इसी तरह पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के एफपीओ से 7,442 करोड़ रुपये और ग्रामीण विद्युतीकरण निगम के एफपीओ से 3,530 करोड़ रुपये जुटाए गए। अप्रैल में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड के आइपीओ से 1,100 करोड़ रुपये जुटाए गए। इसके तहत केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार की संयुक्त उद्यम कंपनी में सरकार ने अपनी दस फीसदी हिस्सेदारी बेची। अगले साल भी सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों में विनिवेश देखने को मिल सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वित्त निगम (पीएफसी) चालू वित्त वर्ष के अंत तक एफपीओ लाने की कोशिश में है। निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां भी विस्तार के मूड में हैं। आने वाले साल में कई कंपनियों की आइपीओ लाने की योजना है। निजी क्षेत्र की जिंदल स्टील एंड पावर की अनुषंगी जिंदल पावर भी मार्च 2011 में अपना आइपीओ ला सकती है। इस साल परमाणु क्षेत्र में ऊर्जा प्रौद्योगिकी और ईधन के हस्तांरण के लिए फ्रांस के साथ महत्वपूर्ण समझौते हुए। इसका मकसद देश की तापीय और पनबिजली परियोजनाओं पर निर्भरता को घटाना और आने वाले वर्षो में कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी को बढ़ाना है। दिसंबर की शुरुआत में फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की यात्रा के दौरान भारत ने दो परमाणु रिएक्टरों के लिए 9.3 अरब डॉलर का समझौता किया। इसके तहत महाराष्ट्र के जैतापुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र लगाने के लिए फ्रांस भारत को दो परमाणु रिएक्टर बेचेगा। फ्रांस की सरकारी कंपनी अरेवा इन रिएक्टरों की आपूर्ति करेगी। सरकार द्वारा पहचानी गई नई परियोजनाओं के संदर्भ में इस साल मौजूदा लागत प्लस शुल्क नीति के बजाए शुल्क आधारित बोली प्रक्रिया की नीति अपनाने का फैसला किया गया। यह नीति निजी क्षेत्र की छोटी कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि कम शुल्क ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो सकता है। लागत प्लस प्रशुल्क में बिजली उत्पादकों से एकमुश्त शुल्क लिया जाता है। साथ ही वितरण कंपनियों द्वारा प्रति यूनिट शुल्क की वसूली की जाती है। 12वीं योजना के लक्ष्य को देखते हुए आने वाले वर्षो में बिजली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश और विस्तार गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं।

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