Friday, April 22, 2011

परमाणु योजनाओं पर सवाल


परमाणु संयंत्रों के स्वरूप पर लेखक की टिप्पणी
जापान की घटनाओं के बाद भारत भी अपने परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा-समीक्षा करने को मजबूर हुआ है। सुरक्षा-समीक्षा का मसला इसलिए भी ज्यादा अहम हो गया है क्योंकि भारत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विस्तार के लिए भिन्न-भिन्न तकनीकों वाले विदेशी रिएक्टर खरीदने जा रहा है। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिख कर परमाणु बिजली की सुरक्षा पर अपने मंत्रालय और जनता की चिंताओं से अवगत कराया है और इस बात पर जोर दिया है कि भारत को अपने परमाणु कार्यक्रम के विस्तार के लिए बिना आजमाए विदेशी रिएक्टरों के बजाय अपने देश में बने हुए हेवी वॉटर रिएक्टरों को ही आधार बनाना चाहिए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि परमाणु ऊर्जा पर निगरानी रखने वाले भारतीय विशेषज्ञ भारत में ही बने रिएक्टरों के संचालन में अधिक दक्षता रखते हैं। सुनामी के बाद उत्पन्न फुकुशीमा संकट से निपटने में जापान की असफलता के बाद कोंकण तट पर जैतापुर में फें्रच रिएक्टरों के लिए दी गई मंजूरी पर पर नए सवाल खड़े हो गए हैं। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में पर्यावरण मंत्री ने इस बात पर खास तौर से ध्यान खींचा है कि भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में बहुत ज्यादा तकनीकी विविधता उत्पन्न हो गई है। देश-निर्मित हेवी वॉटर रिएक्टरों, फास्ट ब्रीड रिएक्टरों और उन्नत थोरियम-आधारित रिएक्टरों के अलावा भारत फें्रच, रूसी और अमेरिकी डिजाइन के लाइट वॉटर रिएक्टर आयातित करने की योजना बना रहा है। जापान का सबसे बड़ा सबक है कि परमाणु कार्यक्रम में एक कठोर नियमन-व्यवस्था बहुत जरूरी है। लेकिन रिएक्टरों में इतनी तकनीकी विविधता को देखते हुए एक कारगर नियमन व्यवस्था निर्मित करना बहुत मुश्किल काम है। पर्यावरण मंत्री का सुझाव है कि भारत को अपने रिएक्टरों का मानकीकरण करना चाहिए। 700 मेगावॉट क्षमता के हेवी वॉटर रिएक्टर अपना कर उसे 1000 मेगावॉट तक अपग्रेड करना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसा रिएक्टर है, जिसमे भारतीय रेगुलेटरों को तकनीकी दक्षता हासिल है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के यूरेनियम भंडार पिछले पांच वर्षो में बढ़ कर दोगुने हो गए हैं। अत: हेवी वॉटर रिएक्टरों को अपनाना सबसे अच्छा विकल्प है। जैतापुर परियोजना की आलोचना का एक प्रमुख बिंदु यह है कि फें्रच रिएक्टरों का डिजाइन परखा हुआ नहीं है। दूसरी बात यह है कि इन रिएक्टरों से बनने वाली बिजली भी बहुत महंगी पड़ेगी। जैतापुर जैसे बहु-रिएक्टर परिसरों में प्रत्येक रिएक्टर के लिए वर्तमान सहभागी सपोर्ट सिस्टम के बजाय अपना अलग सपोर्ट सिस्टम रखने का सुझाव दिया जा रहा है। एक सुझाव यह भी है कि परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आत्मनिर्भर सपोर्ट सिस्टम की स्थापना का जिम्मा पर्यावरण मंत्रालय के बजाय परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड का होना चाहिए। परमाणु नियमन बोर्ड अभी परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत है और अक्सर उसकी यह कह कर आलोचना होती है कि यह स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करता। परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड को पूरी तरह स्वतंत्र और वैधानिक बनाने के लिए संसद द्वारा कानून पास किया जाना चाहिए। भारत में परमाणु सुरक्षा की मौजूदा स्थिति की विस्तृत और गहन समीक्षा भी जरूरी है। इस समीक्षा में सरकारी परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के वैज्ञानिकों के अलावा स्वतंत्र वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली जानी चाहिए। भारत सरकार इस समय फुकुशीमा जैसे बड़े परमाणु रिएक्टर परिसरों को बढ़ावा दे रही है। लेकिन इन परिसरों पर आगे काम तभी हो सकता है, जब हमारे सामने फुकुशीमा की पूरी तस्वीर सामने आ जाए। सिर्फ फुकुशीमा की पूरी रिपोर्ट ही काफी नहीं है। हमें लोगों को परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा के बारे में भी भरोसा दिलाना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

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