जापान के परमाणु संकट ने विश्व के कई देशों को अपने परमाणु संयंत्र निर्माण की योजनाओं पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसे में रूस अपनी धरती से दूर, समुद्र में तैरने और महासागरों में दूरदराज क्षेत्रों में ले जा सकने वाला विश्व का पहला परमाणु संयंत्र बनाने की तैयारी कर रहा है। इस संयंत्र का नाम रूसी वैज्ञानिक मिखाइल लोमोनोसोव के नाम पर एकेडमिक लोमोनोसोव रखा गया है। सेंट पीटर्सबर्ग बाल्टिस्की शिपयार्ड के प्रमुख आंद्रेय फोमिचेव ने कहा, हम चिंतित नहीं हैं क्योंकि हर संभव आपात स्थिति की जांच कर ली गई है। इस संयंत्र में दो छोटे रिएक्टर होंगे जो 70 मेगा वाट बिजली पैदा करेंगे। रूस ऐसे सात और परमाणु संयंत्र बनाने की योजना में है। आंद्रेय ने कहा, छोटे संयंत्रों को दूर तक ले जाया सकता है जिससे वहां महंगे पावर ग्रिड के बिना ही उर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। इस संयंत्र की लागत पांच सौ 50 मिलियन डॉलर (लगभग 24 अरब 38 करोड़ रुपये) है। रूस ऐसे संयंत्रों के निर्यात की योजना भी बना रहा है। समर्थन : रूस समेत कई देश परमाणु संयंत्रों को छोटा करने के पक्ष में हैं, जिन्हें सुविधानुसार कहीं भी लगाया जा सके। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएइए) ने कहा है कि 2030 तक विश्व भर में 40 से 90 छोटे संयंत्रों का प्रयोग शुरू हो जाएगा। आलोचना : परमाणु ऊर्जा के आलोचकों ने चेतावनी दी है कि रूस की योजना घातक साबित हो सकती है। यह आतंकवाद को भी बढ़ावा दे सकती है। पेरिस के स्वतंत्र परमाणु ऊर्जा सलाहकार माइकल शेनीडर ने कहा, आप सुरक्षित परमाणु रिएक्टर बनाने का दावा नहीं कर सकते। तैरते और दूरदराज ले जा सकने वाले संयंत्र से तो खतरा कई गुना बढ़ सकता है। यह पूरी तरह से बेतुका है। रूस के पूर्व परमाणु ऊर्जा उप मंत्री बुलात निगमातुलिन ने कहा, प्रशांत महासागर में जहां सुनामी का काफी खतरा है, परमाणु संयंत्र लगाना पूरी तरह से पागलपन है|
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