Saturday, December 18, 2010

उज्जवल भविष्य का सवाल

ऊर्जा किसी राष्ट्र की प्रगति, विकास और खुशहाली की प्रतीक होती है। प्रगति के पथ पर चलते हुए मनुष्य ने ऊर्जा का विविध रूप में प्रयोग करके अपने जीवन को सरल तो बनाया, लेकिन जाने-अनजाने उसने कई संकटों को भी जन्म दे डाला है। आज ऊर्जा के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग के कारण जहां एक ओर ऊर्जा के श्चोत खत्म होने की आशंका हो गई है, वहीं दूसरी ओर मानव जीवन, पर्यावरण, भूमिगत जल, हवा, पानी, वन, वर्षा सभी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार विजेता वॉल्टर कॉन का कहना है कि आज की वैश्विक ऊर्जा की खपत का 60 प्रतिशत प्रदान करने वाले तेल और प्राकृतिक गैस का कुल उत्पादन अब से करीब 10 से 30 साल बाद चरम पर होगा, लेकिन उसके बाद उनमें तीव्र गिरावट आएगी। ये प्रवृत्तियां दो अभूतपूर्व वैश्विक चुनौतियों को पैदा करेंगी। पहला, स्वीकार्य ऊर्जा की गंभीर वैश्विक कमी और दूसरा अस्वीकार्य ग्लोबल वार्मिग के आसन्न खतरे और परिणाम। भारत ईधन (पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला) में आत्मनिर्भर नहीं है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर भी जीवाश्म ईधन तेजी के साथ दुर्लभ होता जा रहा है। ऐसे में उनके सही उपयोग तथा संरक्षण की आवश्यकता है। वैश्वीकरण के दौर में आज हमारी जीवन शैली में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। यह बदलाव हम इसी रूप में भी देख सकते हैं कि जो काम दिन के उजाले में सरलता से हो सकते हैं, उन्हें भी हम देर रात तक अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था करके करते हैं, उदाहरण के लिए क्रिकेट का खेल, विभिन्न सामाजिक समारोह आदि। हमारी दिनचर्या दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक ऊर्जा मांग करती जा रही है। विकास का जो मॉडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दोगुना करते जाना होगा। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है वह कभी कम होगा, ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता। विकास की अंधी दौड़ में इस तथ्य की अनदेखी हो रही है कि प्रकृति में पदार्थ की मात्रा निश्चित है, जो बढ़ाई नहीं जा सकती। फिर भी पदार्थ का रूप बदलकर, सुख साधनों में परिवर्तन करके, खपत बढ़ाकर विकास का रंगीन सपना देखा जा रहा है। इस विकास के चलते संसाधनों का संकट, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिग, पानी की कमी, ऊर्जा की व्यापक कमी आदि मुश्किलें सिर पर मंडरा रही हैं। प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही हमारी भावी पीढि़यों का भी। जब हम अपने पूर्वजों के लगाए वृक्षों के फल खाते हैं, उनकी संजोई धरोहर का उपभोग करते हैं तो हमारा नैतिक दायित्व है कि हम भविष्य के लिए भी नैसर्गिक संसाधनों को सुरक्षित छोड़ जाएं, कम से कम अपने निहित स्वार्थो के लिए उनका दुरुपयोग तो न करें अन्यथा भावी पीढ़ी और प्रकृति हमें कभी भी माफ नहीं करेगी। ऊर्जा की उत्पत्ति, उपलब्ध ऊर्जा का संरक्षण तथा ऊर्जा को सही दिशा देना जरूरी है। ऊर्जा को बचाने के लिए हमेशा छोटे कदमों की जरूरत होती है, जिनके असर बड़े होते हैं। करेल सरकार बिजली क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये से कम खर्च से वह फायदा हासिल किया जो 2000 करोड़ से अधिक के निवेश से हासिल होता। पूरे प्रदेश में बिजली की बचत करने वाल सीएफएल बल्ब लगाने के केरल सरकार के अभियान से ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हुई। आज ऐसे प्रयोगों को देशव्यापी बनाने की जरूरत है। जरूरत है कि हम बिजली और ऊर्जा की अधिकाधिक बचत के उपायों पर चिंतन करें? क्यों न आज से ही हम अपने व्यक्तिगत जीवन में और अपने परिवेश में बिजली, पेट्रोल, गैस, ऊर्जा की बचज करने का एक महान संकल्प लें। ऊर्जा संरक्षण, बिजली का मितव्ययी उपयोग समय का तकाजा है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)

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