Saturday, February 5, 2011

नीति में नहीं प्रावधान तो कैसे मिले अनुदान


उत्तराखंड केंद्र की सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुदान देने की नीति का लाभ उठाने में फिलहाल नाकाम साबित हो रहा है। वजह, राज्य की ऊर्जा नीति में समुचित प्रावधानों की कमी। इस नीति के अंतर्गत सौ किलोवाट से कम क्षमता की परियोजनाओं को केंद्र प्रति किलोवाट एक लाख रुपये का अनुदान देता है। इस तरह सौ किलोवाट की परियोजना के लिए एक करोड़ का अनुदान दिया जाता है। गंभीर बात यह है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल भी इस मामले में उत्तराखंड का हमकदम बना हुआ है। उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी हिमालयी राज्य केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की सौ किलोवाट की जल विद्युत परियोजनाओं का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। इन दो राज्यों की अपनी ऊर्जा नीति इस मार्ग में बाधक बनी हुई है। हालांकि उत्तराखंड ने अब ऊर्जा नीति में परिवर्तन कर इस नीति का लाभ लेने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए है, लेकिन वक्त सीमित होने के कारण लगता नहीं कि राज्य इसका लाभ ले पाएगा। केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में स्माल हाइड्रो के डायरेक्टर भुवनेश कुमार भट्ट ने बताया कि इस योजना में अरुणाचल प्रदेश में अब तक 60, जम्मू कश्मीर में 54 तथा सिक्किम 14 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश में अपनी ऊर्जा नीति आड़े आने की वजह से अभी तक किसी परियोजना को मंजूरी नहीं मिल पाई है। केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2008-09 में हिमालयी राज्यों के लिए सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुदान देने की नीति लागू की थी। इस नीति के अंतर्गत सौ किलोवाट से कम क्षमता की परियोजनाएं शामिल हैं। केंद्रीय मंत्रालय प्रति किलोवाट एक लाख रुपये का अनुदान देता है। इस तरह सौ किलोवाट की परियोजना के लिए एक करोड़ का अनुदान दिया जाता है। इस मामले में राज्य सरकार की भूमिका सिर्फ डाकिए की होती है। राज्य सरकार के नोडल विभाग को ग्राम सभा, सहकारी समितियों की तरफ से मिलने वाले प्रस्तावों को केंद्र सरकार को बढ़ा देना होता है। अनुदान राशि सीधे संबंधित संस्था को मिलती है। खास बात यह है कि यह योजना ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना तक के लिए ही है, जो मार्च 2012 में समाप्त हो जाएगी। उत्तराखंड सरकार की अपनी ऊर्जा नीति इस योजना की राह में बाधक बनी हुई थी। उत्तराखंड सरकार को अपनी ऊर्जा नीति में बदलाव करने में करीब तीन साल लग गए। हिमाचल प्रदेश में अभी यह प्रक्रिया चल रही है। हिमालयी राज्यों में परंपरागत घराटों के साथ ये परियोजनाएं संचालित हो सकती हैं। ग्राम सभाएं तथा सहकारी समितियां ऐसी परियोजनाओं का संचालन कर सकती हैं। इससे एक तरफ केंद्र सरकार की शत प्रतिशत अनुदान वाली अरबों की योजना का लाभ राज्य को मिल सकेगा, दूसरी तरफ दूरस्थ क्षेत्रों में उत्पादित बिजली ग्रिड में डालने से इन क्षेत्रों में अमूमन आने वाली लो वोल्टेज की समस्या का निदान हो सकेगा.

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