महाराष्ट्र के जैतापुर में बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र को लेकर सरकार और स्थानीय लोगों में काफी मतभेद है। स्थानीय लोग और कुछ बुद्धिजीवी इस संयंत्र के विरोध में प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यह बात शायद कई लोगों को अजीब लग रही होगी कि जापान में आए भूकंप के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हुए विस्फोटों के बाद भी दुनिया में बड़े पैमाने पर नए परमाणु संयंत्रों का निर्माण करने की बात की जा रही है। जापान उन देशों का अगुवा रहा है, जिन्होंने 1970 वाले दशक के तेल संकट की रामबाण दवा परमाणु ऊर्जा को राष्ट्रीय प्राथमिकता देने की पहल की। आज उसके पास 55 परमाणु बिजलीघर हैं। देश की एक तिहाई बिजली वे ही पैदा करते हैं। भारतीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को जरूरी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक बेहतर विकल्प है। टेक्नोलॉजी काफी विकसित और सुरक्षित बनती जा रही है। इसकी बदौलत परमाणु बिजलीघरों में दुर्घटनाओं के जोखिम बहुत कम हो गए हैं और भविष्य में और भी कम हो जाएंगे। आजकल दुनिया-भर में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए अलग-अलग चरणों पर 62 परमाणु रियक्टरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा भविष्य में 300 से अधिक नए रिक्टरों के निर्माण के लिए परियोजनाओं पर चर्चा की जा रही है। रूस, चीन, भारत और दुनिया के कुछ अन्य देशों में राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा व्यवस्था के आधुनिकीकरण के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। भारत, वियतनाम, तुर्की और बुल्गारिया में जो परमाणु बिजलीघर बनाए जा रहे हैं, रूस उनके निर्माण में सहायता कर रहा है। चीन और रूस जैसे अग्रणी देशों ने इस बात की स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि वे जापान में घटी दुर्घटना के बावजूद नई पीढ़ी के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के अपने कार्यक्रमों का त्याग नहीं करेंगे। देश में वर्तमान ऊर्जा की स्थिति देखने से पता चलता है कि थर्मल पॉवर प्लांट कुल ऊर्जा उत्पादन में 64.6 प्रतिशत योग देते हैं, जबकि जल-विद्युत 24.6 प्रतिशत, परमाणु ऊर्जा 2.8 प्रतिशत और पवन ऊर्जा का एक प्रतिशत योगदान रहता है। देश में उत्पादित कुल ऊर्जा की मात्रा का लगभग 23 प्रतिशत वितरण में ही नष्ट हो जाता है। हालांकि वास्तविक क्षति इससे भी अधिक है। तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से परमाणु ऊर्जा और जल विद्युत के प्रति आकर्षण और बढ़ गया है। भारत-अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर चुका है। न्यूक्लियर ऊर्जा को गैर कार्बन उत्सर्जक मानते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। न्यूक्लियर ऊर्जा उत्पादन के लिए हमें गुणवत्ता युक्त कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी, जिससे हमारे परमाणु संयंत्र अबाध रूप से काम करते रहें। वर्तमान में भारत में 14 परमाणु बिजलीघर है, जिनके माध्यम से 2550 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है और नौ अन्य रिएक्टर निर्माणाधीन हैं। इन निर्माणाधीन रिएक्टरों के जरिए अतिरिक्त 4092 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होगा। देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अत्यधिक उपभोग और बढ़ती जनसंख्या से देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए जैतापुर जैसे परमाणु संयंत्रों का लगना आवश्यक है। अलबत्ता इन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में उच्च स्तर के सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन किया जाए, जिससे भविष्य में संभावित किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से इन्हें बचाया जा सके और जनहानि की आशंका भी न रहे। सुरक्षा मानक इतने कड़े हों कि संयंत्र भूकंप और सुनामी को झेल पाए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
Wednesday, June 1, 2011
परमाणु ऊर्जा की दरकार
महाराष्ट्र के जैतापुर में बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र को लेकर सरकार और स्थानीय लोगों में काफी मतभेद है। स्थानीय लोग और कुछ बुद्धिजीवी इस संयंत्र के विरोध में प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यह बात शायद कई लोगों को अजीब लग रही होगी कि जापान में आए भूकंप के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हुए विस्फोटों के बाद भी दुनिया में बड़े पैमाने पर नए परमाणु संयंत्रों का निर्माण करने की बात की जा रही है। जापान उन देशों का अगुवा रहा है, जिन्होंने 1970 वाले दशक के तेल संकट की रामबाण दवा परमाणु ऊर्जा को राष्ट्रीय प्राथमिकता देने की पहल की। आज उसके पास 55 परमाणु बिजलीघर हैं। देश की एक तिहाई बिजली वे ही पैदा करते हैं। भारतीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को जरूरी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक बेहतर विकल्प है। टेक्नोलॉजी काफी विकसित और सुरक्षित बनती जा रही है। इसकी बदौलत परमाणु बिजलीघरों में दुर्घटनाओं के जोखिम बहुत कम हो गए हैं और भविष्य में और भी कम हो जाएंगे। आजकल दुनिया-भर में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए अलग-अलग चरणों पर 62 परमाणु रियक्टरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा भविष्य में 300 से अधिक नए रिक्टरों के निर्माण के लिए परियोजनाओं पर चर्चा की जा रही है। रूस, चीन, भारत और दुनिया के कुछ अन्य देशों में राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा व्यवस्था के आधुनिकीकरण के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। भारत, वियतनाम, तुर्की और बुल्गारिया में जो परमाणु बिजलीघर बनाए जा रहे हैं, रूस उनके निर्माण में सहायता कर रहा है। चीन और रूस जैसे अग्रणी देशों ने इस बात की स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि वे जापान में घटी दुर्घटना के बावजूद नई पीढ़ी के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के अपने कार्यक्रमों का त्याग नहीं करेंगे। देश में वर्तमान ऊर्जा की स्थिति देखने से पता चलता है कि थर्मल पॉवर प्लांट कुल ऊर्जा उत्पादन में 64.6 प्रतिशत योग देते हैं, जबकि जल-विद्युत 24.6 प्रतिशत, परमाणु ऊर्जा 2.8 प्रतिशत और पवन ऊर्जा का एक प्रतिशत योगदान रहता है। देश में उत्पादित कुल ऊर्जा की मात्रा का लगभग 23 प्रतिशत वितरण में ही नष्ट हो जाता है। हालांकि वास्तविक क्षति इससे भी अधिक है। तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से परमाणु ऊर्जा और जल विद्युत के प्रति आकर्षण और बढ़ गया है। भारत-अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर चुका है। न्यूक्लियर ऊर्जा को गैर कार्बन उत्सर्जक मानते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। न्यूक्लियर ऊर्जा उत्पादन के लिए हमें गुणवत्ता युक्त कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी, जिससे हमारे परमाणु संयंत्र अबाध रूप से काम करते रहें। वर्तमान में भारत में 14 परमाणु बिजलीघर है, जिनके माध्यम से 2550 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है और नौ अन्य रिएक्टर निर्माणाधीन हैं। इन निर्माणाधीन रिएक्टरों के जरिए अतिरिक्त 4092 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होगा। देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अत्यधिक उपभोग और बढ़ती जनसंख्या से देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए जैतापुर जैसे परमाणु संयंत्रों का लगना आवश्यक है। अलबत्ता इन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में उच्च स्तर के सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन किया जाए, जिससे भविष्य में संभावित किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से इन्हें बचाया जा सके और जनहानि की आशंका भी न रहे। सुरक्षा मानक इतने कड़े हों कि संयंत्र भूकंप और सुनामी को झेल पाए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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