बिजली की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए बिहार को केंद्रीय पूल का कोटा बढ़ने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है। इससे राज्य में बिजली का संकट अभी कुछ वर्षो तक और बरकरार रहेगा। सेंट्रल इलेक्टि्रसिटी अथॉरिटी (सीईए) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में बिजली की कुल मांग की तुलना में उत्पादन 10.3 प्रतिशत कम हो रहा है। ऐसे में बिहार को केंद्रीय पूल से अतिरिक्त बिजली दे पाना संभव नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार बिजली की सर्वाधिक किल्लत वाला राज्य है। यहां मांग से करीब 28.5 प्रतिशत बिजली कम आपूर्ति होती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले दिनों केंद्रीय पूल से बिजली का कोटा बढ़ाने की मांग को लेकर ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे से मिले थे। केंद्र सरकार की मजबूरी को देखकर ही नीतीश भूटान की बिजली परियोजनाओं में बिहार को हिस्सेदारी देने की मांग को लेकर विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से भी मिले थे। सीईए की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 96.8 करोड़ यूनिट बिजली की मांग के बावजूद 69 करोड़ यूनिट की आपूर्ति हो रही है। व्यस्त समय में राज्य में बिजली की मांग 2123 मेगावाट है। जबकि आपूर्ति 1400 मेगावाट के करीब है। रोजाना 723 मेगावाट यानी 28.7 प्रतिशत कम बिजली की आपूर्ति हो रही है। बिजली किल्लत के मामले में बिहार देश में सबसे आगे है। मध्य प्रदेश में मांग से 19.1 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 16.9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 9.6, जम्मू और कश्मीर में 9.4, तमिलनाडु में 8.4 और कर्नाटक में 7.6 प्रतिशत कम बिजली की आपूर्ति होती है। रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा बिजली की किल्लत पश्चिमी और दक्षिण राज्यों में हैं। दक्षिणी क्षेत्र में 14.5 प्रतिशत और पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों में 11.2 प्रतिशत बिजली की कम आपूर्ति हो रही है। पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में 11 प्रतिशत बिजली की कम आपूर्ति होने की संभावना का आकलन किया गया है। चूंकि पूर्वी राज्यों में उड़ीसा बिजली के मामले में आत्मनिर्भर है। इसलिए किल्लत सिर्फ बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ज्यादा है। दक्षिण क्षेत्र के राज्यों में तमिलनाडु की स्थिति भी अत्यंत ही खराब है। तमिलनाडु तो रोजाना 50 करोड़ रुपये की बिजली खरीद रहा है। इसके बावजूद उसे प्रत्येक दिन 1500 मेगावाट की कमी को पूरा करने के लिए लोड शेडिंग करना पड़ रहा है।
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