हिमाचल का पानी अपना तो है, लेकिन बिजली पराई है। प्रदेश की नदियों को विद्युत परियोजनाओं ने सूखा दिया पर सूबे को जरूरत से बहुत कम बिजली मिल पा रही है। प्रदेश में रोजाना निजी विद्युत परियोजनाओं से 6500 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है, जिसमें से 260 मेगावाट बिजली पड़ोसी राज्यों को बेची जा रही है। ऐसे में गर्मियों के दौरान प्रदेश में पावर कट लगना आम बात सी हो गई है। हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड के पास सिर्फ 480 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। ऐसे में बोर्ड भी क्या करे, क्योंकि अधिकतर निजी विद्युत परियोजनाएं हैं। विशेष यह है कि गर्मियां शुरू होने पर ही ऊर्जा राज्य पावर कट लग जाता है। पावर कट लगना मजबूरी भी है, क्योंकि पड़ोसी राज्यों से सर्दियों में बिजली ली जाती है। इसका कारण प्रदेश की नदियों में सर्दियों के दौरान कम पानी का होना है। खासकर औद्योगिक क्षेत्रों में मई से लेकर सितंबर तक पावर कट से उद्योग जगत भी त्रस्त है। फिलहाल उद्योगों में पावर कट से बचने के लिए कोई तीसरा विकल्प नहीं हैं। बिजली उत्पादक राज्य होने के नाते उद्योगों में बिजली गुल एवं अचानक कट लगने से पावर पॉलिसी पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है। जरूरत 235, उपलब्ध 220 लाख यूनिट : हिमाचल में हर दिन 235 लाख यूनिट बिजली की जरूरत है, लेकिन 220 एलयू ही मिल रही है। बताया जा रहा है कि 15 लाख यूनिट बिजली की सप्लाई पड़ोसी राज्यों के लिए की जा रही है। ऐसा इसलिए कि सर्दियों में हिमाचल खुद पड़ोसी राज्यों से बिजली खरीदता है। विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष सुभाष चंद नेगी ने कहा कि पावर कट लगाने से पूर्व उपभाक्ताओं को सूचित करना होता है, यदि ऐसा नहीं किया तो निजी बिजली कंपनियों के खिलाफ इलेक्टि्रसिटी एक्ट-2003 के तहत सख्त कार्रवाई की जाती है।
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