Saturday, March 26, 2011

परमाणु ऊर्जा से न तलाशें विनाश की राह


कुछ सवाल काफी अहम हैं- क्या भारत के परमाणु प्लांट किसी भी तरह खतरे में हैं? जापान जैसे हादसे का सामना करने के लिए भारत तैयार है? क्या नए चरण के परमाणु विस्तार में भूकम्प प्रभावित इलाकों का ख्याल रखा गया है? क्या संयंत्र बिठाने से पहले विदेशी कम्पनियों ने अपने यहां संयंत्र की पूरी जांच कर ली है? न्यूक्लियर हादसे के लिए कौन जिम्मेदार होगा और मुआवज़ा राशि कम क्यों रखी गई है
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत जैसे विकासशील और भारी आबादी वाले मुल्क को ऊर्जा की सख्त ज़रूरत है। दुनिया भर के ऊर्जा उत्पादन सूचकांक इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि भारत को अपने बूते पर चलने के लिए काफी ऊर्जा चाहिए। दुनिया भर के मुल्कों से अपनी तुलना करें तो हमारे यहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत काफी कम है। इसलिए जब हम चहुंमुखी विकास की बात करते हैं, खासकर आर्थिक विकास की तो महसूस होता है कि ऊर्जा से इसका सीधा ताल्लुक है। यह भी सच है कि भारत में प्रति इकाई ऊर्जा उत्पादन में ज्यादा खर्च करना पड़ता है। इसलिए महंगी ऊर्जा से बचने के लिए हमारे पास दो ही रास्ते हैं। पहला ऊर्जा की बर्बादी से बचा जाए और दूसरा परमाणु रिएक्टरों के जरिये असीमित ऊर्जा का उत्पादन किया जाए। हां, दूसरे मसले में कई पेचीदगियां जरूर हैं लेकिन इससे हमारी जरूरत से ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन हो जाएगा। इसलिए हम कह सकते हैं कि आज के दौर में जब जीवाश्म ईधन में काफी कमी आ गई है, परमाणु ऊर्जा को नकारा नहीं जा सकता है।
मुखालफत क्यों कर रहे हैं लोग
बहरहाल इन दिनों देशभर में पावर प्रोजेक्टों का विरोध जारी है। आंध्र प्रदेश के सोमपेटा में स्थित पावर प्लांट के खिलाफ स्थानीय लोगों ने विरोध किया, पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और दो लोगों की मौत हो गई। कोंकण इलाके में, जो अल्फांसो आम के लिए मशहूर है, 1200 मेगावाट का र्थमल पावर प्लांट बिठाए जाने के प्रस्ताव पर विरोध जारी है। छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह का विरोध हो रहा है। अरुणाचल प्रदेश में भी दस पावर प्लांट अटके हुए हैं। और अब इन सबमें एक नया नाम जुड़ा है जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट का। सरकार इन सब विरोधों को रोकने के लिए दमनात्मक कार्रवाई शुरू कर चुकी है लेकिन यह समझना जरूरी है कि आखिर विकास के पैमाने तय करने वाले इन पावर प्रोजेक्ट से आम इंसान जुड़ क्यों नहीं रहा है?
विनाश का रास्ता है मुख्य वजह
दरअसल, आम इंसान की समझ में यह बात आ गई है कि ज्यादा बड़े पावर प्लांट विनाश के रास्ते हैं। खासकर, देश भर में बिना किसी खास सुरक्षा तैयारियों के कई न्यूक्लियर पावर प्लांट को बिठाने का प्रस्ताव है। हालांकि न तो इसके लिए आम लोगों से राय ली गई और न ही वैज्ञानिकों की। जैतापुर का इलाका खेती के लिए मशहूर है। यहां पावर प्लांट लगे तो आम की खेती पूरी तरह से चपट हो जाएगी। इलाके की खेती-किसानी पर भी असर पड़ेगा क्योंकि नदियों में प्लांट का कूड़ा-कचरा बहेगा। वैसे इस इलाके में तीन बड़ी नदियां हैं। इसलिए यहां सिंचाई की समस्या साल भर नहीं होती है। इसके अलावा जैतापुर भूकम्प प्रभावित इलाकों में गिना जाता है। हाल ही में जापान में आई आपदा से भी हमारी सरकार को कुछ सीखने की जरूरत है। न्यूक्लियर पावर प्लांट से निकले रेडिएशन लाखों सालों तक मौजूद रहते हैं। तभी तो जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका के गिराए गए परमाणु बमों का असर आज भी बाकी है। ऊपर से अब भूकम्प, सुनामी के बाद रिएक्टर में विस्फोट से रेडिएशन का खतरा काफी बढ़ गया है।
एक नहीं, अनेक हैं खतरे
दरअसल, परमाणु ईधन में इस्तेमाल होने वाले तत्व यूरेनियम- 235, प्लूटोनियम, ट्रिटियम समस्थानिक रहते हैं, जिनकी अर्ध आयु लाखों साल की होती है। इसलिए इनके क्षय होने में लाखों साल लग जाते हैं। तब तक ये तत्व पर्यावरण के किसी भी अवयव के सम्पर्क में आकर जानलेवा प्रदूषण फैलाते हैं। रेडिएशन का प्रभाव इतना व्यापक होता है कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इसकी चपेट में आते रहते हैं। यहां तक कि प्रभावित शख्स के गुणसूत्र में भी विसंगतियां आ जाती हैं। इसके अलावा त्वचा कैंसर से लेकर कई अंगों का विफल हो जाना जैसी बीमारियां हैं।
लोगों को भरोसे में लेना जरूरी
ऐसे में भारत के दृष्टिकोण से कुछ सवाल काफी अहम हैं- क्या भारत के परमाणु प्लांट किसी भी तरह खतरे में हैं? जिस तरह के हादसे जापान में हुए, उस तरह की चुनौती का सामना करने के लिए भारत तैयार हैं? क्या नए चरण के परमाणु विस्तार में भूकम्प प्रभावित इलाकों का ख्याल रखा गया है? क्या संयंत्र बिठाने से पहले विदेशी कम्पनियों ने अपने यहां संयंत्र की पूरी जांच कर ली है? किसी भी तरह के न्यूक्लियर हादसे के लिए कौन जिम्मेदार होगा और आखिरी सवाल मुआवज़ा राशि कम क्यों रखी गई है? ये कुछ अहम सवाल हैं, जिनके जबाव आम लोगों को दिया जाना जरूरी है। लेकिन अपने यहां गैर-सामरिक परमाणु मसले को भी गोपनीयता कानून के दायरे में रखा जाता है। इससे भी काफी भ्रम फैला है। हालांकि इसके मायने ये नहीं हैं कि परमाणु ऊर्जा को नकार दिया जाए। यह तो साफ है कि मौजूदा विश्व में परमाणु ऊर्जा सर्वसुलभ और प्रचुर है लेकिन जरूरी यह है कि इससे विनाश के रास्ते नहीं तलाशे जाएं। चाहे वे इंसानों की हरकत से हों, या प्राकृतिक आपदा से।


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