Tuesday, July 10, 2012

कोयला संकट पर पीएमओ भी नाकाम


नीतिगत फैसलों में सरकार की सुस्ती के चलते देश भर में गंभीर बिजली संकट जारी है। बिजली प्लांटों को कोयले की आपूर्ति में आ रही दिक्कतों को दूर करने में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) भी नाकाम रहा। उसके हस्तक्षेप के बावजूद कोल इंडिया पर्याप्त कोयला आपूर्ति करने को राजी नहीं हो रही है। दरअसल पीएमओ स्वयं ही कोयला आपूर्ति पर कोई ठोस फैसला नहीं कर पा रहा है। बिजली संयंत्रों को कोयला की सुनिश्चित आपूर्ति को लेकर देश की सबसे बड़ी कोयला कंपनी कोल इंडिया (सीआइएल) के निदेशक बोर्ड की मंगलवार को होने वाली बैठक भी टल गई है। पावर प्लांटों को ईंधन आपूर्ति समझौते (एफएसए) पर निजी बिजली कंपनियों के साथ बढ़ते विवाद को देखकर ही सीआइएल ने यह बैठक टाली है। देश का लगभग पूरा कोयला उत्पादन कोल इंडिया के हाथ में है। पीएमओ इस पूरे मुद्दे पर फिर से कोयला और बिजली मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है। पिछले हफ्ते ही पीएमओ के प्रमुख सचिव पुलक चटर्जी की अध्यक्षता में एक अहम बैठक में यह सहमति बनी थी कि कोल इंडिया हर हालत में बिजली प्लांटों के साथ हुए एफएसए का न्यूनतम 65 फीसद कोयला देगी। इसे तीन वर्षो में बढ़ाकर 80 फीसद करने की बात थी। तीन महीने पहले पीएमओ ने कई दौर की बैठकों के बाद यह फैसला किया था कि सीआइएल को पहले वर्ष से ही न्यूनतम 80 फीसद कोयला देना होगा। अगर बिजली संयंत्र को वादे के मुताबिक इतना कोयला नहीं दिया गया तो कंपनी पर जुर्माना लगेगा, साथ ही 90 फीसद या इससे ज्यादा कोयला देने पर प्रोत्साहन का प्रावधान था। कोल इंडिया ने शुरू में हामी भी भर दी थी, लेकिन बाद में वह मुकर गई। पीएमओ का फैसला न तो एनटीपीसी को स्वीकार है और न ही निजी बिजली कंपनियों को। सीआइएल को 48 पावर प्लांटों के साथ एफएसए करना है, लेकिन अभी तक सिर्फ 27 के साथ ही समझौता हो सका है। इस समझौते के अभाव में दर्जनों बिजली प्लांट पूरी क्षमता से बिजली पैदा नहीं कर पा रहे हैं। उत्तर भारत के कई पावर प्लांटों के पास बमुश्किल दो-तीन दिन के लिए कोयला है। अगर सरकार और सीआइएल ने इन प्लांटों को कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के तत्काल कदम नहीं उठाए तो उत्तर भारत में बिजली का संकट और बढ़ेगा। निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों (आइपीपी) का कहना है कि वर्ष 2009 के बाद शुरू किए गए संयंत्रों को समझौते का सिर्फ 40 फीसद ही कोयला मिल पा रहा है।