Saturday, July 16, 2011

जनजातियों का शोषण कर रहीं निजी बिजली कंपनियां

ठ्ठ जागरण ब्यूरो, शिमला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय आयोग के अध्यक्ष रामेश्र्वर ओराव का कहना है कि राज्य की धूमल सरकार की उदासीनता के चलते देवभूमि हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों में निजी बिजली कंपनिया लोगों को शोषण कर रहीं हैं। उन्होंने कहा कि निजी कंपनियां हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन से बिजली परियोजनाओं के लिए मिलने वाले मुआवजे में भी भेदभाव कर रही हैं। ओराव शिमला में शुक्रवार को पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि हिमाचल के जनजातीय इलाकों में जहां भी बिजली परियोजनाएं बन रही हैं, वहां की जनता शोषित हो रही है। इसके लिए हिमाचल सरकार जिम्मेदार है। सरकार की उदासीनता के चलते निजी बिजली कंपनिया कारपोरेशन से मिलने वाली मुआवजे की धनराशि क्षेत्र के लोगों को पूरी नहीं दे रहीं हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन बिजली परियोजना से प्रभावित लोगों को एक लाख चार हजार रुपये प्रति बिस्वा के हिसाब से मुआवजा दे रहा है, लेकिन निजी कंपनियां लोगों को मुआवजा देने में भेदभाव कर रही हैं। ओराव ने कहा कि आयोग ने प्रदेश व केंद्र सरकार से जनजातीय लोगों के लिए लीज पर जमीन मांगी है। ओराव ने कहा कि हिमाचल के जनजातीय क्षेत्र के लोगों को वन अधिकार और लीज पर जमीन मिलनी चाहिए। 13 जुलाई को इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है और यह मामला लोकसभा के मानसून सत्र में पेश होगा। वन अधिकार कानून वर्ष 2008 में संसद में पास हुआ, लेकिन अभी तक हिमाचल सरकार ने इसे अमल में नहीं लाया है। प्रदेश में लोगों ने लीज पर ली जमीन के मामले 5356 हैं, जिसमें से अभी तक 236 को सरकार ने स्वीकृति दे दी है। उन्होंने कहा कि हालांकि हिमाचल में ट्राइबल लोगों पर शोषण का मामला अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है, लेकिन यहां के लोग वन अधिकार से वंचित हैं। उन्होंने सरकार से अपील की है कि अल्पसंख्यक अधिकार अधिनियम के तहत जनजातीय क्षेत्र की जनता को लीज पर जमीन मिलनी चाहिए।ओराव ने बताया कि हिमाचल में अल्पसंख्यक अधिकार के अंतर्गत करीब 279 लोगों ने वन भूमि को लीज पर लेने का दावा किया, जिसमें से मात्र 59 को ही स्वीकृति मिली है। प्रदेश में 3406 ऐसे मामले हैं जो अल्पसंख्यक अधिकार के तहत लंबित हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश की मुख्य सचिव राजवंत संधू की अध्यक्षता में इन मुद्दों पर समीक्षा बैठक की।