Friday, February 25, 2011

मप्र में नहीं लग सकता बड़ा परमाणु रिएक्टर


सूरज की रोशनी से दमकेगा पश्चिमी राजस्थान


उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान के रेतीले धोरों में सूरज की रोशनी से बड़ी मात्रा में बिजली पैदा होगी। प्रदेश में झुंझुनूं से लेकर जैसलमेर जिले के क्षेत्र में स्पेशल सोलर एनर्जी जोन विकसित होंगे। सैकड़ों किलोमीटर लंबे इस सोलर जोन में पूरा जैसलमेर व बीकानेर जिला, नागौर का खींवसर और जोधपुर का फलौदी क्षेत्र भी शामिल है। यहां पर सोलर र्थमल पावर की इकाइयों से 430 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। इससे विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेश आत्मनिर्भर हो जाएगा। सौर ऊर्जा र्थमल पावर प्लांट की अकेले सौ-सौ मेगावाट क्षमता की तीन इकाइयां होंगी। इनमें सोलर र्थमल पावर की आठ इकाइयां जैसलमेर के नाचना व जोधपुर के फलौदी के आसपास के क्षेत्र में लगाई जानी हैं। इसी प्रकार फोटो वोल्टिक सोलर एनर्जी के प्लांट एक से लेकर पांच मेगावाट विद्युत क्षमता तक के स्थापित किए जाएंगे। इन प्लांटों से कुल मिलाकर 164 मेगावाट बिजली पैदा होगी। इन क्षेत्रों में एक इकाई को छोड़कर सभी सोलर इकाइयां का काम शुरू हो चुका है। एक इकाई को छोड़कर सभी सौर ऊर्जा इकाइयां निजी कंपनियां बनाएंगी। नेशनल सोलर मिशन की माइग्रेशन स्कीम में बीकानेर से जैसलमेर तक के क्षेत्र में विभिन्न जगहों पर 66 मेगावाट की 11 सौर ऊर्जा इकाइयां लगाने के लिए केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। निजी कंपनियों की ओर से बनाई जाने वाले इकाइयों में सात पांच मेगावाट की, तीन इकाइयां दस मेगावाट की तथा एक इकाई एक मेगावाट की है। पश्चिमी राजस्थान में कई जगह सोलर एनर्जी के प्लांट का निर्माण कार्य चल रहा है। नागौर के खींवसर में रिलांयस एनर्जी द्वारा पांच मेगावाट का प्लांट चालू हो चुका है। ओसियां में फार सोलर नाम की कंपनी द्वारा पांच मेगावाट तथा बीकानेर के भरूखीरा के पास एक्मे कंपनी दस मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र बना रही है। भरूखीरा में प्रस्तावित दस में से ढाई मेगावाट क्षमता का प्लांट बन चुका है। इस प्लांट से मार्च तक विद्युत उत्पादन शुरू होने की आशा है। इसके अलावा फागी के पास एक मेगावाट विद्युत क्षमता का प्लांट भी बन रहा है। इस साल इस सोलर जोन में 105 मेगावाट की 21 इकाइयां स्थापित की जाएंगी। इनमें से प्रत्येक की क्षमता पांच मेगावाट की होगी। ये सभी इकाइयों फोटो वोल्टिक सोलर एनर्जी पद्धति से बनेंगी। केंद्र सरकार की जीबीआई स्कीम के तहत एक-एक मेगावाट की 12 इकाइयां लगाने की मंजूरी भी मिल चुकी हैं। इनमें से एक इकाई लूणकरणसर तहसील के बामनवाली गांव की रोही में शुरू हो चुकी है। राजस्थान रिनेवल एनर्जी कॉपरेरेशन के निदेशक एमएम विजयवर्गीय के अनुसार सरकार के स्वीकृत सोलर र्थमल पावर व सोलर फोटो वोल्टिक प्लांट के लिए पावर पर्चेज एग्रीमेंट की कार्रवाई हो चुकी है। 594 में से सोलर फोटो वोल्टिक की 105 मेगावाट 21 इकाइयों व 400 मेगावाट की सोलर र्थमल पावर इकाइयों के लिए भूमि आवंटन कार्रवाई कर चल रही है।



Sunday, February 20, 2011

तेल-गैस खोज में आधुनिक प्रौद्योगिकी का हो इस्तेमाल


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में तेल-गैस की खोज और रिफाइनरी में उन्नत प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया। दूसरे राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी (आरजीआइपीटी) की आधारशिला रखते हुए सिंह ने कहा कि आने वाले वर्षो में इन क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी के बेहतर उपयोग का महत्व और भी ज्यादा होगा। उन्होंने कहा कि अभी काफी समय तक भारत ऊर्जा जरूरत के लिए पेट्रोलियम पर निर्भर रहेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने देश में शेल गैस की संभावनाओं के आकलन का काम शुरू कर दिया है। यह आकलन पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी किया जा रहा है। इसके मद्देनजर शिवसागर में स्थापित किया जा रहा नया संस्थान अहम साबित होगा। पूर्वोत्तर क्षेत्र में खनिज तेल-गैस की अच्छी संभावना है। पिछले वित्त वर्ष में देश के कुल कच्चे तेल उत्पादन में इस क्षेत्र का 15 प्रतिशत योगदान रहा। इस दौरान इस क्षेत्र से 3.38 अरब घन मीटर गैस भी प्राप्त हुई। उन्होंने कहा कि नई तेल खोज लाइसेंसिंग नीति के आठ चरणों में पूर्वोत्तर क्षेत्र में 25 प्रखंडों का आवंटन किया गया। इनका कुल क्षेत्र 42,000 वर्ग किलो मीटर है। राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान से पढ़कर निकलने वाले लोग पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएंगे। संस्थान से पेट्रोलियम उद्योग से संबंधित विविध पाठ्यक्रमों में डिग्री और डिप्लोम प्रमाणपत्र दिए जाएंगे। इस संस्थान का पहला परिसर उत्तर प्रदेश के रायबरेली में है। इसे भारतीय प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों की तरह स्वायत्तता मिली है। प्रस्तावित आरजीआइपीसी संस्थान भविष्य में मानव संसाधन की मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने के उद्देश्य से स्थापित किया जा रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत आने वाले उपक्रमों के तत्वावधान में संचालित इस संस्थान के दूसरे परिसर में पहला शिक्षण सत्र सितंबर 2011 में शुरू किया जाएगा। इस पर 143 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार असम सहित पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। असम में गैस क्रैकर कारखाने की बहुत पुरानी मांग पूरी हो रही है। सिंह ने अप्रैल 2007 में डिब्रूगढ़ में इसकी आधारशिला रखी थी। उन्होंने कहा कि इस संयंत्र पर केंद्र कुल 5,500 करोड़ रुपये का निवेश कर रहा है। उन्होंने कहा कि क्रैकर इकाई चालू होने से क्षेत्र में प्लास्टिक और पेट्रो रसायन उद्योग की काफी इकाइयों की स्थापना होने की उम्मीद है।


Saturday, February 5, 2011

नीति में नहीं प्रावधान तो कैसे मिले अनुदान


उत्तराखंड केंद्र की सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुदान देने की नीति का लाभ उठाने में फिलहाल नाकाम साबित हो रहा है। वजह, राज्य की ऊर्जा नीति में समुचित प्रावधानों की कमी। इस नीति के अंतर्गत सौ किलोवाट से कम क्षमता की परियोजनाओं को केंद्र प्रति किलोवाट एक लाख रुपये का अनुदान देता है। इस तरह सौ किलोवाट की परियोजना के लिए एक करोड़ का अनुदान दिया जाता है। गंभीर बात यह है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल भी इस मामले में उत्तराखंड का हमकदम बना हुआ है। उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी हिमालयी राज्य केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की सौ किलोवाट की जल विद्युत परियोजनाओं का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। इन दो राज्यों की अपनी ऊर्जा नीति इस मार्ग में बाधक बनी हुई है। हालांकि उत्तराखंड ने अब ऊर्जा नीति में परिवर्तन कर इस नीति का लाभ लेने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए है, लेकिन वक्त सीमित होने के कारण लगता नहीं कि राज्य इसका लाभ ले पाएगा। केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में स्माल हाइड्रो के डायरेक्टर भुवनेश कुमार भट्ट ने बताया कि इस योजना में अरुणाचल प्रदेश में अब तक 60, जम्मू कश्मीर में 54 तथा सिक्किम 14 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश में अपनी ऊर्जा नीति आड़े आने की वजह से अभी तक किसी परियोजना को मंजूरी नहीं मिल पाई है। केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2008-09 में हिमालयी राज्यों के लिए सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुदान देने की नीति लागू की थी। इस नीति के अंतर्गत सौ किलोवाट से कम क्षमता की परियोजनाएं शामिल हैं। केंद्रीय मंत्रालय प्रति किलोवाट एक लाख रुपये का अनुदान देता है। इस तरह सौ किलोवाट की परियोजना के लिए एक करोड़ का अनुदान दिया जाता है। इस मामले में राज्य सरकार की भूमिका सिर्फ डाकिए की होती है। राज्य सरकार के नोडल विभाग को ग्राम सभा, सहकारी समितियों की तरफ से मिलने वाले प्रस्तावों को केंद्र सरकार को बढ़ा देना होता है। अनुदान राशि सीधे संबंधित संस्था को मिलती है। खास बात यह है कि यह योजना ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना तक के लिए ही है, जो मार्च 2012 में समाप्त हो जाएगी। उत्तराखंड सरकार की अपनी ऊर्जा नीति इस योजना की राह में बाधक बनी हुई थी। उत्तराखंड सरकार को अपनी ऊर्जा नीति में बदलाव करने में करीब तीन साल लग गए। हिमाचल प्रदेश में अभी यह प्रक्रिया चल रही है। हिमालयी राज्यों में परंपरागत घराटों के साथ ये परियोजनाएं संचालित हो सकती हैं। ग्राम सभाएं तथा सहकारी समितियां ऐसी परियोजनाओं का संचालन कर सकती हैं। इससे एक तरफ केंद्र सरकार की शत प्रतिशत अनुदान वाली अरबों की योजना का लाभ राज्य को मिल सकेगा, दूसरी तरफ दूरस्थ क्षेत्रों में उत्पादित बिजली ग्रिड में डालने से इन क्षेत्रों में अमूमन आने वाली लो वोल्टेज की समस्या का निदान हो सकेगा.

Thursday, February 3, 2011

नो गो क्षेत्रों की पीएम ने पूछी कैफियत


नो गो खनन क्षेत्रों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से जल्द फैसला करने को कहा है। दरअसल, कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे अगले कुछ वर्षो में बिजली आपूर्ति में बड़ी कमी हो सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सोमवार को प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई आपात बैठक में पर्यावरण मंत्री को यह संदेश दिया गया। इस बैठक में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी मौजूद थे। बैठक में नो गो क्षेत्र में आने वाले 203 कोयला क्षेत्रों पर चर्चा की गई। पर्यावरण मंत्रालय ने वन क्षेत्र में आने वाले इन कोयला क्षेत्रों में खनन गतिविधियों पर पाबंदी लगा रखी है। इनमें से ज्यादातर ब्लॉक सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के पास हैं। देश की कोयला मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ रहे अंतर को कम करने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड चाहती है कि कम से कम आधे ब्लॉक में खनन गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दी जाए। कंपनी ने चालू वित्त वर्ष के अंत तक 46 करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा है। हालांकि, हाल में पेश की गई पर्यावरण प्रदूषण सूची के कारण कंपनी की योजना विफल होती नजर आ रही है। उम्मीद की जा रही है कि अब कंपनी केवल 44.4 करोड़ टन कोयला उत्पादन कर पाएगी। इस मामले पर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कई बार प्रधानमंत्री से मुलाकात कर चुके हैं। इसके बाद सरकार ने नो गो खनन क्षेत्रों के मामले पर एक मंत्रिसमूह का गठन किया है। कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि पीएम ने कोल इंडिया के लक्ष्य से कम उत्पादन के अनुमान को ध्यान में रखते हुए सभी मंत्रालयों को सहयोग करने को कहा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि अगर कोल इंडिया अपने निर्धारित लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाती है, तो आपूर्ति प्रभावित होगी। इससे आने वाले समय में बिजली आपूर्ति पर बुरा असर पड़ सकता है। कोल इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष पार्थ एस भट्टाचार्य ने कहा कि अगर कंपनी के आठ ब्लॉक में खनन की अनुमति नहीं दी गई, तो वर्ष 2011-12 के लिए तय किया गया 48.9 करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाना भी मुश्किल हो जाएगा। इन क्षेत्रों में नई पर्यावरणीय सूची के कारण खनन गतिविधियां रुकी हुई हैं। अगर खनन पाबंदी को नहीं हटाया जाता है, तो एक अनुमान के मुताबिक अगले वर्ष कंपनी 45 करोड़ टन कोयले का उत्पादन ही कर पाएगी।



Wednesday, February 2, 2011

मुर्गियों की बीट से जेनरेटर चलाकर किया हैरान


बिजली का कनेक्शन न मिलने से दुखी एक किसान ने मुर्गियों की बीट से गैस बनाई और उससे जेनरेटर चलाकर अपना बिजलीघर बना डाला। यह किया है सिलानी गांव 50 वर्षीय किसान सुखबीर सिंह ने। सुखबीर सिंह ने करीब 20 हजार मुर्गियों वाली हेचरी खोलने के बाद मुर्गियों की बीट से ही बायोगैस बनाने के लिए प्लांट लगाया था। इससे निकलने वाली मीथेन गैस से रसोई गैस की कमी को तो दूर कर ही लिया, साथ ही उसने 62 केवी के जेनरेटर को भी इस गैस से चलाकर 50 किलोवाट बिजली का उत्पादन किया। यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला प्रयोग है। सुखबीर पहले इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान की दुकान करते थे। इस पर उनका करीब साढ़े 8 लाख रुपये का खर्च आया है। 50 प्रतिशत डीजल का प्रयोग फिलहाल जेनरेटर को चलाने के लिए सुखबीर सिंह 50 प्रतिशत गैस और 50 प्रतिशत डीजल का प्रयोग कर रहे हैं। तकनीक में और सुधार करके डीजल की खपत कम करने की योजना पर काम किया जा रहा है। अभी तक गोबर से ही बायोगैस बनाने का काम किया जाता रहा है। कृषि विभाग के एडीओ डॉ. संदीप फौगाट का कहना है कि प्रदेश में मुर्गी की बीट से बायोगैस प्लांट व जेनरेटर चलाने का यह पहला प्रयोग है। इसके अलावा हिसार की एक गोशाला में गोबर गैस प्लांट के माध्यम से डीजल इंजन चलाने में सफलता प्राप्त की है। अभी इस तकनीक पर ज्यादा कार्य करने की आवश्यकता है, क्योंकि विदेशों में 25 प्रतिशत डीजल और 75 प्रतिशत गैस से इस तरह के इंजन चलाए जा रहे हैं।