Thursday, December 30, 2010

उत्तर प्रदेश की पांच बिजली परियोजनाओं को हरी झंडी

राज्य मंत्रिपरिषद ने प्रदेश की पांच महत्वाकांक्षी विद्युत परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी है। यह फैसला मुख्यमंत्री मायावती की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। इनमें संडीला, गाजीपुर, बिल्हौर और खुर्जा तापीय परियोजनाएं शामिल हैं। ये परियोजनाएं 1320 मेगावाट की हैं, जिसमें संडीला में 1188 मेगावाट, गाजीपुर में 1320 मेगावाट, बिल्हौर में 792 मेगावाट व खुर्जा में 560 मेगावाट राज्य अंश प्रस्तावित है। इन परियोजनाओं के विकासकर्ताओं ने पूर्व में 50 प्रतिशत अंश बिजली बेचने की सहमति दी थी, लेकिन अब 90 प्रतिशत अंश प्रदेश सरकार को बेचने पर राजी हैं। एनर्जी टास्क फोर्स भी 90 प्रतिशत बिजली क्रय करने की अनुमति दे चुकी है। इसी क्रम में बरगढ़ में 660 मेगावाट की तीन परियोजनाओं के लिए समझौता किया गया है। इसके तहत ऊर्जा नियामक आयोग द्वारा निर्धारित दरों को क्रय करने के प्रावधान के साथ मेसर्स बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड के कंसोर्टियम से समझौता ज्ञापन इस प्रतिबंध के साथ किया जाएगा कि वे पानी की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए परियोजना में एयर कूलिंग सिस्टम का प्रयोग करेंगे। मल्टीप्लेक्स छविगृह प्रोत्साहन योजना को मंजूरी : राज्य मंत्रि परिषद ने मल्टीप्लेक्स छविगृह प्रोत्साहन योजना-2010 को भी मंजूरी प्रदान कर दी है। यह योजना 31 मार्च 2015 तक प्रभावी रहेगी। योजना से सरकार को 10 से 20 करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त आय होगी। फैसले के अनुसार इस योजना के तहत नोएडा, ग्रेटर नोएडा और नगर निगमों की तुलना में स्थानीय क्षेत्रों में खुलने वाले मल्टीप्लेक्स के लिए अधिक अनुदान दिया जाएगा। नोएडा, ग्रेटर नोएडा व नगर निगम क्षेत्र में प्रथम वर्ष छविगृह से संग्रहीत मनोरंजन कर का सौ प्रतिशत अनुदान, दूसरे और तीसरे वर्ष 75 प्रतिशत तथा चौथे-पांचवें वर्ष संग्रहीत कर का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। इससे भिन्न स्थानीय क्षेत्रों में निर्मित होने वाले मल्टीप्लेक्स के लिए प्रथम तीन वर्ष संग्रहीत मनोरंजन कर का सौ प्रतिशत और चौथे-पांचवें साल संग्रहीत कर का 75 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला किया है। ईंट-भट्ठा सीजन 2010-11 के लिए समाधान योजना : कैबिनेट ने ईंट-भट्ठा सीजन 2010-11 के लिए कतिपय शर्तो के साथ समाधान योजना लागू की है। समाधान योजना अपनाने वाले ईंट-भट्ठा व्यापारी को आईटीसी का लाभ अनुमन्य नहीं होगा। टेंट व्यवसायियों के लिए भी समाधान योजना : कैबिनेट ने 25 लाख रुपये तक का स्टाक रखने वाले टेंट व्यवसायियों के देय कर के विकल्प में समाधान योजना लागू की है। इस योजना से राज्य सरकार को एक करोड़ रुपये राजस्व मिलने की उम्मीद है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट परियोजना के लिए नि:शुल्क भूमि : कैबिनेट ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट परियोजना के लिए कृषि विभाग की 19 हेक्टेयर भूमि नगर विकास विभाग को नि:शुल्क स्थानांतरित करने का फैसला किया है। यह जमीन लखनऊ जिले की ग्रामसभा शिवरी में है। नाबार्ड के पक्ष में 3400 की गारंटी : मंत्रिपरिषद ने उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड लखनऊ के ऋणपत्रों के निर्गमन हेतु नाबार्ड के पक्ष में वर्ष 2010-11 के लिए 3400 करोड़ रुपये की गारंटी स्वीकृत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। प्रस्ताव अनुमोदित : उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 29, 64, 31क एवं धारा 104 में संशोधन किए जाने हेतु अध्यादेश जारी करने और यथासमय प्रतिस्थानी विधेयक लाने के प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया गया है। एग्रीमेंट विलेख पर स्टांप शुल्क छूट : मंत्रिपरिषद ने औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा निष्पादित होने वाले एग्रीमेंट विलेखों पर स्टांप शुल्क छूट को मंजूरी दे दी है। यह छूट ऐसे मामलों में मिलेगी, जिसमें द्वितीय पक्ष को कब्जा नहीं मिल पाया।

Wednesday, December 29, 2010

बायोगैस को सीएनजी में बदलने के लिए लगेगा प्लांट

स्वीडन की कंपनी से चल रही बातचीत अंतिम दौर में
नई दिल्ली। नए र्वष में दिल्ली जल बोर्ड स्वीडन की कंपनी के साथ मिलकर बायोगैस का स्वरूप सीएनजी में बदल कर सिलेंडरों में भरकर बेचेगा। इसका ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया गया है। जल्द ही इस योजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुरू कर दी जाएगी। जो पाइपलाइन बायोगैस की आपूर्ति के लिए डाली गई है, उसे केमिकल डालकर नष्ट कर दिया जाएगा। जिन कॉलोनियों में बायोगैस की आपूर्ति हो रही है, वह बंद कर दी जाएगी। बायोगैस गैस आपूर्ति से दिल्ली जल बोर्ड को लगातार घाटा हो रहा था। दिल्ली जल बोर्ड अब बायोगैस को सीएनजी में तब्दील कर उसे बेचेगा। इसके लिए स्वीडन की कंपनी से वार्ता चल रही है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर पंप लगाकर भी सीएनजी बेचने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए दिजबो द्वारा पूरी योजना तैयार कर ली गई है। इस योजना के तहत बायोगैस को प्लांट में ही सीएनजी में तब्दील कर पाइप लाइन के माध्यम से पंप तक पहुंचाया जाएगा। पंप पर सिलेंडरों में गैस भरी जाएगी। काबिलेगौर है कि दिल्ली जल बोर्ड सीवेज प्लाटों से बायोगैस तैयार कर राजधानी की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के ब्लाक ,बी,सी,डी, फ्रेंड्स कॉलोनी ईस्ट, मसीगढ़ ,जुलेना गांव, ईश्वर नगर, होली फैमिली हास्पिटल, र्चच कंपाउंड, जामिया नगर, नूर नगर, तैमूर नगर, कालिंदी कुंज, ओखला, सुखदेव नगर के अलावा कई अन्य कॉलोनियों में 100 रुपए प्रतिमाह की दर से आपूर्ति करता था। दिजबो को बायोगैस आपूर्ति में लागत भी नहीं निकल रही थी। घाटे से बचने व लाभ कमाने के लिए दिजबो उन सभी कॉलोनियों में बायोगैस की आपूर्ति जनवरी से बंद करने जा रहा है। दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ रमेश नेगी ने बताया कि पाइप लाइनें पुरानी हो गई थीं। कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती थी। नई पाइप लाइने डालना र्खचीला काम था। सड़क कटिंग के नाम पर लोक निर्माण विभाग और नगर निगम को बड़ी राशि अदा करनी पड़ती। साथ ही गैस आपूर्ति में घाटा भी हो रहा है। इसलिए नया विकल्प चुना गया है।

Tuesday, December 28, 2010

बिजली संयंत्रों के लिए चीनी उपकरण मंगाना तकलीफदेह

भारत के निजी क्षेत्र द्वारा चीन से बड़ी मात्रा में विद्युत संयंत्र उपकरणों के आयात के आर्डर देने पर चिंता जताते हुए शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक एमआर श्रीनिवासन ने इसे तकलीफदेह बताया है। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एमआर श्रीनिवासन ने बताया कि जब चीनी प्रधानमंत्री हाल ही में भारत यात्रा पर आए थे तो हमारे निजी क्षेत्र की तरफ से चीन से 30 हजार मेगावाट से 40 हजार मेगावाट के विद्युत संयंत्रों के उपकरण मंगाने के लिए आर्डर दिए गए। परमाणु ऊर्जा आयोग के मौजूदा सदस्य श्रीनिवासन ने संकेत दिया कि भारत ने चीन से पहले विद्युत संयंत्र के उपकरण बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन चीन इस क्षेत्र में अपने दम पर तेजी से बढ़ा है और उसके पास इतनी क्षमता है कि वह बड़े आर्डर ले सकता है और प्रतिस्पर्धा में सभी को मात दे सकता है। उन्होंने कहा, हम देश को चीनी उपकरणों के आधार पर बिजली नहीं देना चाहते। श्रीनिवासन ने कहा कि वह चीन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि देश को भारतीय उपकरणों के आधार पर बिजली मिलनी चाहिए। श्रीनिवासन ने कहा कि इस क्षेत्र में साम‌र्थ्य विकसित करने में लंबा समय लगता है

Tuesday, December 21, 2010

पावर कॉर्प पर सरकार मेहरबान

गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन पर राज्य सरकार मेहरबान हो गई है। सरकार ने कॉरपोरेशन को बिजली आपूर्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए रिवाल्विंग शासकीय गारंटी दी है। यह गारंटी 4500 करोड़ रुपये की धनराशि के लिए दी गई है। गौरतलब है कि प्रदेशवासियों को बिजली आपूर्ति का जिम्मा संभालने वाला पावर कॉरपोरेशन आठ हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के घाटे में है। प्रदेशवासियों को बिजली मिलती रहे, इसके लिए कॉरपोरेशन को सरकार से लोन गारंटी की दरकार रहती है। ऐसी ही गांरटी से कॉरपोरेशन ने पूर्व में तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये का लोन ले रखा है। दरअसल, कॉरपोरेशन प्रबंधन को बिजली खरीदने से लेकर कर्मियों के वेतन-भत्ते व अन्य खर्चो के लिए सालाना 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक चाहिए होते हैं। प्रतिमाह करीब 12-13 सौ करोड़ रुपये की बिजली खरीदने के अलावा प्रबंधन को लगभग सौ करोड़ रुपये वेतन, 500 करोड़ रुपये लोन की किस्तों की अदायगी और लगभग सौ करोड़ रुपये अन्य पर खर्च करने होते हैं। प्रबंधन को बिजली बेचने और अनुदान आदि से हर माह तकरीबन 14-15 सौ करोड़ रुपये ही मिलते हैं। ऐसे में उसे प्रतिमाह पांच-छह सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा हो रहा है। वित्त वर्ष में कॉरपोरेशन को 9,760 करोड़ रुपये के कैश गैप का अनुमान है। प्रबंधन का साफ मानना है कि उसकी पतली हालत के पीछे बिजली की दरें लागत से कम होने के अलावा बिजली चोरी और गांवों को सस्ती बिजली देना बड़ा कारण है। विदित हो कि 2009-10 में प्रबंधन टैरिफ में 29 फीसदी वृद्धि चाहता था, लेकिन नियामक आयोग ने औसतन 13 फीसदी की ही वृद्धि मंजूर की थी। सूत्रों के मुताबिक कॉरपोरेशन प्रबंधन उपरोक्त परिस्थितियों के मद्देनजर खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए बिजली खरीदने व अन्य खर्चो के लिए सरकार से सात हजार करोड़ रुपये की लोन गारंटी चाह रहा था। कॉरपोरेशन का कहना था कि बैंक व वित्तीय संस्थाओं से लोन लेने के लिए उसके पास अन्य कोई गारंटी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में बिना शासकीय गारंटी के उसे लोन मिलना संभव ही नहीं हो सकता है। ऐसे में वित्तीय संकट के बावजूद राज्य सरकार ने कॉरपोरेशन पर खास मेहरबानी करते हुए इस बार न केवल 4500 करोड़ रुपये की शासकीय गारंटी दी है, बल्कि यह आम शासकीय गारंटी से अलग रिवाल्विंग गारंटी है। मतलब यह है कि कॉरपोरेशन प्रबंधन 4500 करोड़ रुपये तक का लोन उक्त गारंटी से जब तक चाहे ले सकता है। एक बार लिया गया लोन अदा करने के बाद भी उक्त सीमा तक शासकीय गारंटी कॉरपोरेशन के पास बनी रहेगी।

Saturday, December 18, 2010

कैसे आए पटरी पर विद्युत व्यवस्था

प्रा य: बिजली के संकट की चर्चा महानगरों के संदर्भ में ही होती है और यह बड़ी खबर बन जाती है कि किसी पाश इलाके में पांच- छह घंटे तक बिजली गुल रही। पर देश के तमाम गांवों में इससे अधिक समय तक लगभग प्रतिदिन बिजली की अनुपस्थिति सामान्य बात है। ग्रामीण विद्युतीकरण के आंकड़े चाहे जितने भी असरदार ढंग से प्रस्तुत किए जाएं, पर सचाई यही है कि जिन गांवों में बिजली पहुंच चुकी है वहां बिजली की आपूत्तर्ि बहुत ही असंतोषजनक है। कहीं बिजली अधिकांश समय गायब रहती है तो कहीं वोल्टेज बहुत कम होती है और अक्सर बिजली ठीक उस समय नदारद हो जाती है जब उसकी अधिक जरूरत होती है। बिजली की समस्या सबसे अधिक दूर-दराज के उन पर्वतीय या रेगिस्तानी गांवों में है जहां सामान्य या मुख्य ग्रिड से बिजली पहुंचाना अधिक महंगा पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्राय: देखा गया है कि गांव की मुख्य बस्ती से अलग जो घर दूर-दूर बसे होते है व जिनमें प्राय: अधिक निर्धन व कमजोर वर्ग के परिवार रहते है, उनमें भी बिजली की पंहुच कम होती है। ग्रामीण विकेंद्रीकरण की इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए आजकल अपेक्षाकृत कम खर्च पर विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा आधारित मॉडल की चर्चा जोर पकड़ रही है। हाल में इस मॉडल की अधिक चर्चा बिहार के संदर्भ में रही है। बिहार में जिस तरह विकास की नई पहल व रचनात्मक प्रयोगों को लेकर उम्मीद जगी है, उस संदर्भ में भी यह चर्चा महत्वपूर्ण है। बिहार में इस तरह के अक्षय ऊर्जा आधारित विकेन्द्रीकृत ऊर्जा के मॉडल को आगे बढ़ाने में पर्यावरण रक्षा से जुड़े विख्यात संगठन ग्रीनपीस की विशेष भूमिका रही है। हाल के बिहार के चुनावों से पहले इस संगठन के कायकर्ताओं ने विभिन्न राजनीतिक दलों से संपर्क कर आग्रह किया कि वे अपने घोषणा पत्रों में विकेन्द्रीकृत ऊर्जा विकास को स्थान दें ताकि दूर-दराज के गांवों में बिजली की बेहतर आपूत्तर्ि की पृष्ठभूमि तैयार हो सके। प्रसन्नता की बात है कि कुछ राजनीतिक दलों ने इस ओर समुचित ध्यान भी दिया। बिहार में इस दिशा में जो भी सार्थक कार्य पहले से हो रहे थे, उनकी जानकारी एकत्र करने व इसे प्रचारित करने का कार्य भी ग्रीनपीस ने किया है ताकि इस तरह के और प्रयासों को प्रोत्साहन मिल सके। इन प्रयासों में जहां चावल की भूसी से बिजली प्राप्त करने के सार्थक परिणाम मिले है वहीं सौर ऊर्जा के प्रयास भी शामिल है। अक्षय ऊर्जा के ाोत तो विविध तरह के हो सकते है, पर इस विकेन्द्रित मॉडल की एक विशेषता यह है कि बिजली के मुख्य ग्रिड से हटकर भी गांव अपनी बिजली की जरूरत को अक्षय ऊर्जा ाोतों से प्राप्त कर सकते है। हालांकि कुछ उपकरण बाहर से प्राप्त करने होंगे, पर इस राह पर चलकर काफी हद तक गांव बिजली के मामले में आत्म-निर्भर हो सकते है। इतना ही नहीं, अक्षय ऊर्जा उचित मूल्य पर प्राप्त हो सकती है, यह बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के आंरभिक कार्य से सिद्ध हुआ है। बिजली की असंतोषजनक स्थिति के पहले गांववासियों को डीजल पर जितनी रकम खर्च करनी पड़ती थी, यदि उससे तुलना की जाए तो अक्षय ऊर्जा ाोत से यहां प्राप्त होने वाली बिजली गांववासियों को महंगी नहीं पड़ रही है। एक अन्य महवपूर्ण मुद्दा यह है कि जिस तरह विश्व स्तर पर जलवायु बदलाव की रफ्तार कम करने के लिए एक विशाल कोष बनाने की बात चल रही है, उससे उम्मीद बंधती है कि फॉसिल ईंधन के उपयोग को कम करने वाले जो अक्षय ऊर्जा ाोत है, उनके लिए निकट भविष्य मेंे काफी सहायता मिल सकती है। यह सच है कि इस बारे में विकसित देश अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे है और इस कारण जलवायु बदलाव की गति कम करने के उपायों के प्रसार के लिए जो धन जरूरी है, उसे मिलने में देरी हो रही है पर उम्मीद है कि जलवायु बदलाव की गंभीरता के खतरे को देखते हुए आज नहीं तो कल अक्षय ऊर्जा ाोतों के लिए काफी बड़े स्तर पर सहायता प्राप्त हो सकेगी। तब अक्षय ऊर्जा ाोतों से प्राप्त बिजली के खर्च को और कम किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ाोतों के महत्व को समझते हुए इसमें अनुसंधान कार्य जोर पकड़ रहा है। उम्मीद है कि इसके बल पर इसके खर्च को भविष्य में कम किया जा सकेगा। इस तरह अक्षय ऊर्जा ाोतों का अधिक व्यापक विस्तार संभव होगा। बिहार में जिस तरह अक्षय ऊर्जा ाोत आधारित विकेंद्रित ऊर्जा विकास मॉडल पर कार्य हुआ है इस तरह की संभावनाओं को अन्य राज्यों में भी बढ़ाया जाना चाहिए। उत्तराखंड में परंपरागत घराटों के साथ छोटे स्तर पर पनबिजली से अक्षय ऊर्जा की ऐसी संभावनाएं उत्पन्न की जा सकती है जिससे पर्यावरण का कोई नुकसान नहीं होगा। इस तरह एक ओर गांवों की आत्मनि र्भरता बढ़ेगी व दूसरी ओर जलवायु बदलाव का संकट कम करने में भी मदद मिलेगी।

उज्जवल भविष्य का सवाल

ऊर्जा किसी राष्ट्र की प्रगति, विकास और खुशहाली की प्रतीक होती है। प्रगति के पथ पर चलते हुए मनुष्य ने ऊर्जा का विविध रूप में प्रयोग करके अपने जीवन को सरल तो बनाया, लेकिन जाने-अनजाने उसने कई संकटों को भी जन्म दे डाला है। आज ऊर्जा के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग के कारण जहां एक ओर ऊर्जा के श्चोत खत्म होने की आशंका हो गई है, वहीं दूसरी ओर मानव जीवन, पर्यावरण, भूमिगत जल, हवा, पानी, वन, वर्षा सभी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। रसायन विज्ञान में नोबल पुरस्कार विजेता वॉल्टर कॉन का कहना है कि आज की वैश्विक ऊर्जा की खपत का 60 प्रतिशत प्रदान करने वाले तेल और प्राकृतिक गैस का कुल उत्पादन अब से करीब 10 से 30 साल बाद चरम पर होगा, लेकिन उसके बाद उनमें तीव्र गिरावट आएगी। ये प्रवृत्तियां दो अभूतपूर्व वैश्विक चुनौतियों को पैदा करेंगी। पहला, स्वीकार्य ऊर्जा की गंभीर वैश्विक कमी और दूसरा अस्वीकार्य ग्लोबल वार्मिग के आसन्न खतरे और परिणाम। भारत ईधन (पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला) में आत्मनिर्भर नहीं है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर भी जीवाश्म ईधन तेजी के साथ दुर्लभ होता जा रहा है। ऐसे में उनके सही उपयोग तथा संरक्षण की आवश्यकता है। वैश्वीकरण के दौर में आज हमारी जीवन शैली में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। यह बदलाव हम इसी रूप में भी देख सकते हैं कि जो काम दिन के उजाले में सरलता से हो सकते हैं, उन्हें भी हम देर रात तक अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था करके करते हैं, उदाहरण के लिए क्रिकेट का खेल, विभिन्न सामाजिक समारोह आदि। हमारी दिनचर्या दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक ऊर्जा मांग करती जा रही है। विकास का जो मॉडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दोगुना करते जाना होगा। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है वह कभी कम होगा, ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता। विकास की अंधी दौड़ में इस तथ्य की अनदेखी हो रही है कि प्रकृति में पदार्थ की मात्रा निश्चित है, जो बढ़ाई नहीं जा सकती। फिर भी पदार्थ का रूप बदलकर, सुख साधनों में परिवर्तन करके, खपत बढ़ाकर विकास का रंगीन सपना देखा जा रहा है। इस विकास के चलते संसाधनों का संकट, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिग, पानी की कमी, ऊर्जा की व्यापक कमी आदि मुश्किलें सिर पर मंडरा रही हैं। प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही हमारी भावी पीढि़यों का भी। जब हम अपने पूर्वजों के लगाए वृक्षों के फल खाते हैं, उनकी संजोई धरोहर का उपभोग करते हैं तो हमारा नैतिक दायित्व है कि हम भविष्य के लिए भी नैसर्गिक संसाधनों को सुरक्षित छोड़ जाएं, कम से कम अपने निहित स्वार्थो के लिए उनका दुरुपयोग तो न करें अन्यथा भावी पीढ़ी और प्रकृति हमें कभी भी माफ नहीं करेगी। ऊर्जा की उत्पत्ति, उपलब्ध ऊर्जा का संरक्षण तथा ऊर्जा को सही दिशा देना जरूरी है। ऊर्जा को बचाने के लिए हमेशा छोटे कदमों की जरूरत होती है, जिनके असर बड़े होते हैं। करेल सरकार बिजली क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये से कम खर्च से वह फायदा हासिल किया जो 2000 करोड़ से अधिक के निवेश से हासिल होता। पूरे प्रदेश में बिजली की बचत करने वाल सीएफएल बल्ब लगाने के केरल सरकार के अभियान से ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हुई। आज ऐसे प्रयोगों को देशव्यापी बनाने की जरूरत है। जरूरत है कि हम बिजली और ऊर्जा की अधिकाधिक बचत के उपायों पर चिंतन करें? क्यों न आज से ही हम अपने व्यक्तिगत जीवन में और अपने परिवेश में बिजली, पेट्रोल, गैस, ऊर्जा की बचज करने का एक महान संकल्प लें। ऊर्जा संरक्षण, बिजली का मितव्ययी उपयोग समय का तकाजा है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)